विचलित जज़्बातों का शोर
रुहानी थकन -ठहराव
कर्तव्यों की तपिश
सांझ-पहर-या उनींद भोर–
थके तलवो पर धूसर -धूल
यूं जैसे चरणों में फूल
कुम्हलाया भावविहिन रुप
छवि को सहेजती कौली धूप–
मुझ तक लाती खबर तुम्हारी
इत्तेफा़क- नियती दो तितली प्यारी
खुद को छलते मन के तारे–
रहती तुम-तक
अक्ष-अस्थिर परिक्रमा मेरी
नक्ष सब अचंभ निहारे–
स्थिर तुम भी खुद हो जलते
लेकिन–
उजियारे से जग को भरते
रश्मियां देती पल संदेश
मौसम कहते मन के भेद–
यूं मन ईशान मे जीवंत कौन?
कलश स्थापित या मुखरित मौन?
रिक्तता थी सदा यहां
कोई ना आया कभी यहां–
क्षणिक या की अक्षय तुम?
ठहरे ह्रदय सौरमंडल में
नवग्रहों सी बनकर ज्योत–
वीणाश्री💜
