मैंने भुला दिया वो मजदूर कब का जो मोबाइल बेच
खरीद लाया आखरी बार राशन और झूल गया छत से
मुझे अब याद नही किस राज्य की थी वो खबर
पैदल निकली थी माँ बाप के साथ
मर गयी रास्ते में ही चलते चलते ग्यारह साल की बच्ची
मेरे बेटे से साल भर ही छोटी थी वो
रोये गाय होंगे मजदूर माँ बाप
इन जाहिलों को मालूम नही भूख से बड़ी बीमारी
“होमसिकनेस” है जो अमीरों को होती है
हमारे बच्चे मन बहलाने ऑन लाइन गेम खेल रहे है
देखों हम भी तो लाकडाउन झेल रहे है

कुछ दिन बाद भूला दूँगी पटरियों पर बिखरी ये रोटियाँ
जो अगली सुबह के लिए बचाकर रखी गयी थी
वो सुबह जो कभी नही उगी उनकी उदास आँखों में
रात में सोने से पहले पटरियों पर थककर लेटे हुए
शायद बातें हुईं होंगी
सड़कों पर हमें घेरने , मारने पुलिस है
हम पटरी पटरी छिपकर माँ के पास पहुँच जाएँगे
बस तीन दिन और फिर हम भी
घर में सोएंगे और खाएँगे
इंतज़ार कर रही है बीवी
पहुँचने के बाद अकेले में लिपटा कर बोलेंगे
तुझे छोड़कर अब हम कभी नही जाएंगे
बातें करते करते अपने पैरों को देर तक दबाया होगा
पटरियों को सुरक्षित जान सोए थे वे ये समझकर
ट्रेन गर इस पर चलती होती तो हम क्यों
नापते रास्ते इतने दिनों से यू पैदल चलकर
हप्तों के थके पाँव थे
जिगर में मिले शहरियों से मिले गहरे घांव थे
गहरी नींद के आगोश में थे जो
ये लोग अपने बच्चों के लिए बरगद की छाँव थे
आज टुकड़ों में आखिर पहुँच गए है घर
वे सब साथी जो संग चले इसी गाँव थे
अरे छोड़ों मैं भुला दूँगी चंद दिनों में पटरियों पर
बिखर गई खून से सनी रोटियाँ
मुझे तो अभी मोबाइल पर शराब में लगी लाइन कोसने से
नही फुर्सत है
पटरी पर सोने कि मूर्खता से अभी करना हिकारत है
जानती हूँ जो पटरियों पर कटे वो लोग और है
ये लाइन में खड़े कोई और थे
पीने का पानी तीन किलोमीटर दूर से लाने वालों को
घड़ी घड़ी हाथ धोने की देनी नसीहत है
इन 17 कटे मजदूरों को भुलाकर अपने दिए टैक्स का गुणगान करेंगे
“होमसिकनेस” भूख से बड़ी अमीरों की बीमारी है
ये मजदूर तो पहले भी मरते थे और मरते रहेंगे ..(.Madhu)
(पोस्ट शेयर करने अनुमति की आवश्यकता नही है।)
Madhu__ writer at film writer’s association Mumbai
