बंधन
बंधन है यह रक्षा का
संरक्षण का ,समर्पण का
प्रेम और कर्तव्य का
रंग -बिरंगे धागों का
आत्मीयता पूर्ण भावों का ।।
रिश्तो का अनमोल यह बंधन भावों का यह भँवर जाल है
इसमें फंँस कर ही तो पनपा
भाई -बहन का यह प्यार है ।
किंतु,
रेशमी धागों के बंधन को
जो बंधन मान बैठे तुम
मनभेद और मतभेद को
जो पाल बैठे तुम ।
खत्म हो जाएगा धागे का महत्व ,
द्रोपदी ने जो बांधा ‘कृष्ण’ को इंद्राणी ने ‘इंद्र’ को
विलुप्त हो जाएगी संस्कृति
उसी क्षण
पावन पर्व को जो अपावन
मान बैठे तुम ।
स्वरचित
कुमुद दीक्षित
लखनऊ