
1.अपना जीवन परिचय दें और बताएं लेखन की प्रेरणा आपको कहाँ से मिलती है?
मेरा नाम प्रीति त्रिपाठी है,जन्म स्थान ग्वालियर,स्कूली शिक्षा लखनऊ में हुई।पिता ऑडिट विभाग में कार्यरत थे तो स्थानांतरण होता रहता था,कॉलेज भोपाल से किया। मैने Msc BEd तक शिक्षा प्राप्त की है।
मेरे पिता स्वर्गीय श्री राम देव मिश्र स्वयं एक विज्ञ कवि थे,घर में सदैव पढ़ने,लिखने और कविता का माहौल रहा।पिता से बेहद करीब होने के कारण उनके लेखन के साथ भी जुड़ाव रहा और मूलतः मैंने भाषा कौशल और लय बद्धता उन्हीं को पढ़ कर सीखी।आकाशवाणी दिल्ली से एक लंबा जुड़ाव रहा जिसने इस अभिरुचि को और बल दिया।
अब जो कुछ भी लिखती हूं वो सीधे सीधे मनोभावों को कागज़ पर उतार देने का ही कार्य है।
2.साहित्य की किस विधा में आपकी कलम यात्रा करती है?

मूलतः मैं गीत लिखती हूं,इसके अतिरिक्त गज़ल और लघुकथा लिखना भी पसंद है।
- लेखन से जुड़े किसी यादगार वाकये की किस्सागोई साझा करें
मेरे पिता अपनी विभागीय पत्रिका के संपादक थे,मेरी पहली कविता का जन्म उस दिन हुआ जिस दिन वे पत्रिका के लिए आई हुई रचनाओं की प्रूफ रीडिंग कर रहे थे।सुबह 3.30 का समय था।मैं पढ़ाई कर रही थी,अनायास ही मैंने रचनाओं को पढ़ना शुरू किया तो एक भी पसंद नही आई और ये बात मैने पापा से कह भी दी।उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा,तो तुम्ही कुछ लिख दो,हम आमंत्रित कवि की रचना के रूप में प्रकाशित कर देंगे यदि योग्य हुई तो
मैने इसको एक चैलेंज की तरह लिया और आधे घंटे में किसी दैवीय कृपा से अपनी पहली रचना उनके समक्ष रख दी।बिना किसी संशोधन के वो कविता न सिर्फ प्रकाशित हुई बल्कि उसे सभी का स्नेह भी प्राप्त हुआ।
ये मेरे लिए एक न भूलने वाला अनुभव सिद्ध हुआ और आत्मविश्वास आया।

4.आपकी अन्य प्रकाशित
रचनाओँ के बारे में बताएँ।

मेरी रचनाएं पत्र पत्रिकाओं और e पत्रिकाओं में छपती रही हैं।
साझा संकलन
कहां न पहुंचे कवि
कविता अविराम
5.लेखन आपके लिए कितना सहज है और इस पर आपकी व्यक्तिगत राय क्या है ?




लेखन मेरे लिए जीने और सांस लेने जितना सहज है।जो जिया वो लिखा ही मेरी समझ से सबसे अभूतपूर्व सृजन कराता है।
6.चूँकि आपके लेखन के मूल में प्रेम है, आपके अनुसार प्रेम की परिभाषा क्या है ?
प्रेम एक दिव्य अनुभूति है जो आपको जीवन का अनिवरचनीय
आनंद भी दे सकती है और अश्रुओं के सागर में डूब जाने जितना दुख भी।
सांसारिकता से ऊपर उठ कर यदि कोई आपके मन और मस्तिष्क में छाया रहे तो वही प्रेम है।
7.साहित्य को आप अपने तरीके से कैसे परिभाषित करते हैं?
साहित्य समाज का दर्पण है।सृजन प्रेरक हो,अनुभूतिजन्य हो तभी सार्थक हो सकता है।
8.हिंदी साहित्य का भविष्य आप कैसा देखते हैं?
हिंदी साहित्य का भविष्य निःसंदेह उज्ज्वल है।हालांकि सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण सभी अपने आपको प्रबुद्ध समझने लगे हैं किंतु आज भी वास्तविक साधकों और लेखकों की कमी नही है।
9.लेखन के अलावा आपके शौक में और क्या-क्या शुमार है?
मुझे संगीत सुनना,गाना,किताबें पढ़ना और प्रकृति के सान्निध्य में रहना पसंद है।
10.साहित्य 24 परिवार के नवोदित रचनाकारों को आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
अच्छा लिखना चाहते हैं तो अच्छा पढ़ें और भाषा ज्ञान और व्याकरण पर विशेष ध्यान दें।सृजन में मौलिकता का हमेशा ख्याल रखें।