साक्षात्कार-
कवयित्री डॉ भावना पालीवाल
यात्रा:-
मैं मूल रूप से पचोर राजगढ़ मध्यप्रदेश की निवासी हूँ।मेरा जन्म पचोर तहसील के एक गाँव पिपलिया में हुआ। शिक्षा की बात की जाए तो उसमें स्थान परिवर्तन ज्यादा देखने को मिलेगा। यह हास्य का विषय भी हो सकता है कि प्रारंभिक शिक्षा गाँव से प्रारंभ होकर कई शहरों से गुजर कर अभी इंदौर में चल ही रही है।गाँव से जब पचोर पढ़ने के लिए सरकारी बसों के धक्के खाने शुरू किए तब ही से एक टिस महसूस होने लगी तब ही से जिससे अतुकांत कविताओं ने जन्म लेना शुरू किया।।सरस्वती विद्या मंदिर से 9 वी से 12 वी कक्षा तक अपने विद्याअध्ययन करना मेरी कविताओं और हिंदी साहित्य को समझने के लिए नीव का पत्थर साबित हुआ। हाँ , ये बात और हे कि मुझें इन कविताओं को लोगों तो पहुँचाने में एक लंबा सफर तय करना पड़ा और वो सफर कभी दुनिया तक का था ही नहीं एक झिझक के कारण मुझसे मुझ तक का ही सफर था।औऱ ये सफर पूरा हुआ कोटा से मेडिकल की तैयारी के बाद मिले मेडिकल कॉलेज की एक क्लास के फ्री लेक्चर में जिसमे पहली बार एक कविता अपने कॉलेज के टीचर और दोस्तों के बीच पड़ी। उस वक्त जो तालियों और दोस्तो से उत्साह मिला उसने मुझें कविताओं के एक नए सफर के लिए तैयार किया।
कॉलेज के प्रथम वर्ष से ही स्थानीय साहित्यिक संस्थाओं की गोष्ठियों और open mic और भी social media platform में भाग लेने लगी थी। इन्ही गोष्ठियों से स्थानीय , फिर नगरीय और राष्ट्रीय कविसम्मेलनो, और कई स्थानीय और राष्ट्रीय अखबारों और tv channel’s तक पहुँची |सब कुछ महाकाल की कृपा से अनायास ही होता चला गया। यही मेरी काव्य यात्रा है।


कविता क्या है?
लोगों अक्सर मुझसे यह प्रश्न करते है कि मेरे लिए कविता क्या है, उस उत्तर मे कहि मैंने लिखा नयन का नीर अधरों पर लिखी चाहत कविता है। लगे अपनो सी करती ना कभी आहत कविता है। जिसे गाकर के तुलसी मीर और रसखान झूमें है माँ के आँचल से जख्मों पर मिली राहत कविता है।मेरे हिसाब से कविता मेरे जीवन की रेखा का काम करती है।भावना के बिना कविता नहीं और कविता के बिना भावना नहीं।प्रश्न अब ये उठता है कि मेरे अनुसार कविता के मानक क्या है?यहाँ मेरे अनुसार कहना इस कारण जरुरी हो जाता है क्योंकि मानक प्रति व्यक्ति, परिस्थिति और सत्ता के अनुसार बदलता रहता है। कविताएँ लिखना जो प्रारंभ होती है वो अतुकांत से ही लिखना प्रारंभ होती है और किसी छंद मात्रा दोहे के एक पैमाने पर आकर बैठती है। इसका यह मतलब नहीं के अतुकांत कविताएँ कविता नहीं होती सच माने तो अतुकांत कविताओं में सही भावों को लिखा जा सकता है वो मुक्त होती है आज सभी बन्धनों से, वैसे भी हमारी पीढ़ी के युवा उन्हीं को सुनना ज्यादा पसंद करते है।
कविताएँ अकेलेपन से साथी से लेकर सत्ता को हिलाने तक कि क्षमता रखती हैं
चूंकि उम्र मेरी उतनी नहीं के कई सारे ग्रन्थों का अध्यन हो पाता पर फिर भी छायावाद के कवियों और छायावादी कविताओं का मुझ पर विशेष प्रभाव रहा चाहे वो जय शंकर प्रसाद के कानन कुसुम हो,सुमित्रानंदन पंत के वीणा पल्लव हो,या महादेवी वर्मा के रशिम निहार सभी का एक अलग ही प्रभाव रहा मुझ पर।मेरे लिए बार बार पढ़े जाने वाले उपन्याकरो में कभी जो एक नाम नही छूट सकता वो प्रेमचंद का है। उनके लिखे गोदान ,रंगभूमि, निर्मला के अर्थ ही कुछ और है मेरे लिए।
वर्तमान समय कवि जिन्हें पढ़ना चाहिए?
वर्तमान समय की अगर बात की जाए तो आप नीलोत्पल मृणाल ,दिव्य प्रकाश दुबे, गीत चतुर्वेदी,चेतन भगत, जैनेंद्र कुमार, ज्ञान चतुर्वेदी आदि को आप पढ़े तो आपको अच्छा ही लगेगा ।
मंच पर सफर।
देखिए जैसा पहले भी बताया है मंच पर आना अचानक हुआ था कोई पहले से तैयारी नहीं थी। जो सीखा काव्यपाठ करते करते ही सीखा है। कैसे कविताओं को पढ़ा जाता है, मंचो पर क्या पढ़ा जाना चाहिए। कविताओ में प्रस्तुतिकरण का क्या महत्व होता है?किस तरह के कविसम्मेलन पढ़ना चाहिए?ये सभी चीजें एक वक्त के साथ धीरे धीरे बीते 2-3सालों में जानी है और भी अभी बहुत कुछ जानना समझना शेष है सब कुछ समय के साथ आ ही जाएगा।
भविष्य में कविताओ के लिए क्या सोचा?
वैसे तो कहा जाता है कि जो काम भविष्य के लिए आपने तय किए है वो पूरे होने के पहले बताए नहीं जाते और वैसे भी कोरोना जैसी महामारी में घर मे कैद होने के बाद बड़े बडे लोगो के कई काम अटके है उस हिसाब से भविष्य का अंदाजा दिया जाना मुश्किल ही है पर हाँ बता सकती हूं कि अगले छ महीनों में ईश्वर की कृपा से सब ठीक हो जाए और देश कोरोना मुक्त हो जाए तो आप सभी को मेरे दो कविता संग्रह पढ़ने को मिलेंगे। बाकी भविष्य के लिए इतना ही सोचा है कि बहुत कुछ अच्छा अच्छा पढ़ना है और बहुत कुछ अच्छा लिखना है।