शोभा किरण
जीवन पथ पर चलते चलते ,
फूल मिलेंगे कांटे भी ,
तेरी राहों के फूल सभी ,
मैं चुन लूंगी पलकों से ,
जब बो दूंगी आशा के बीज ,
तब सुगंध बन तुम मिलना मुझे।
जब मन से मन मिल जाते हैं ,
तब तन का कोई मोल कहां ?
मैं बंध बैठी जिस डोरी से,
अब उससे कुछ अनमोल कहाँ?
जब वचन निभाने की हो बारी,
तब अनुबंध बन तुम मिलना मुझे ।
मेरे होठों के गीत सभी,
तुम से ही शुरू तुम पर ही खत्म ,
कभी शब्द अगर मुझसे रूठे,
बस में गर मेरे लय न रहे,
जब लिख ना पाऊं कोई कविता ,
तब छंद बन तुम मिलना मुझे ।
अंतिम सांसों की आहट हो ,
लड़खड़ाती बोली घबराहट हो ,
पलकों की आखिरी थपकी हो,
आखिरी धड़कन की दस्तक हो,
अगले जनम फिर से मिल जाए ,
वह प्रबंध बन तुम मिलना मुझे।
शोभा किरण
जमशेदपुर /झारखंड