कवि रोहित “राकेश” बरेली उत्तर प्रदेश

साक्षात्कार-

कवि रोहित “राकेश” बरेली उत्तर प्रदेश

(1प्रश्न-)आप हिन्दी कवि सम्मेलन के प्रसिद्ध कवि व मंच संचालक है पाठक जानना चाहते है कि आपकी काव्य-यात्रा कैसे प्रारम्भ हुई।

(उत्तर)मैं बरेली उत्तर प्रदेश की निवासी हूँ।मेरा जन्म और पालन पोषण भी बरेली पांचाल नगरी में हुआ।हम तीन भाई है मेरे पिता जी कलाप्रेमी थे।90 के दशक में पिता जी एक संस्था के साथ हर वर्ष फिल्मी सितारों को बरेली बुलाते थे।संगीतकारों का हमारे घर आना जाना लगा रहता था।आकाशवाणी के डायरेक्टर हमारे घर के पड़ोस में ही रहते थे।हिंदी में बचपन से ही मेरी रुचि थी।परंतु मै विद्यार्थी कॉमर्स का रहा।अखबारों में कविता पढ़ पढ़ कर इंटर में हिंदी कविता के प्रति लिखने की रुचि जाग्रत हुई ।अतुकांत व तुकबंदी कविता करते करते जब में पड़ोस के आकाशवाणी के डायरेक्टर साहब को जानकारी हो गयी कि मुहल्ले के एक बच्चे को कविता लिखने का शौक है ।उन्होंने युगवाणी कार्यक्रम में आकाशवाणी में काव्य पाठ का अवसर प्रदान किया।बरेली के स्थानीय कवियों से परिचय हो गया।जब मै बरेली कॉलेज से b com ओनर्स की पढ़ाई कर रहा था इसी बीच पिता जी का निधन हो गया।काव्य सफर कुछ समय के लिये थम गया।कुछ समय कष्ठ से गुजरा। समय कुछ अनुकूल होते ही
गोष्ठियों में जाना प्रारम्भ कर दिया। उसके बाद स्थानीय कवि सम्मेलनों फिर नगर के बाहर के कवि सम्मेलनों, प्रदेश स्तरीय, अखिल भारतीय और फिर अन्तरराष्ट्रीय कवि सम्मेलनों तक पहुँचा।
यही मेरी काव्य यात्रा है।

(2प्रश्न-)आपका नाम रोहित “राकेश” है इस नाम के पीछे क्या रहस्य है?
(उत्तर) आपने अच्छा प्रश्न किया है वैसे मेरा नाम जन्म से रोहित अग्रवाल है।पिता जी के गुजरने के बाद मैने उनकी याद में अपना उपनाम राकेश रख लिया मै हर वर्ष पिता जी के नाम से एक सम्मान “राकेश साहित्य सम्मान” भी एक सहित्यकार को प्रदान करता हूँ।

(3प्रश्न )आप कवि सम्मेलनों की भी लोकप्रिय मंच संचालक हैं।एक अच्छे मंच संचालक में कौन कौन से गुण होने चाहिए व
कवि सम्मेलन में मंच संचालन के समय दूसरे कवियों की पंक्ति पढ़ना कितना उचित है?

(उत्तर)मंच संचालक एक सारथी की तरह होता है।मंच संचालक पूरे कवि सम्मेलन की धुरी होता है।संचालक को सभी विधा का ज्ञान होना आवश्यक है।कुशल मंच को चाहिए वो कार्यक्रम के उद्देश्य के साथ साथ आमंत्रित कवियों का परिचय इस प्रकार दे कि श्रोताओं में कार्यक्रम के अंत तक कवियों के प्रति उत्सुकता व रोचकता बनी रहे।संचालक को जिस शहर में कार्यक्रम हो रहा है उस शहर व वहाँ के साहित्यकारों के विषय में जानकारी पहले से होनी चाहिए।संचालक को आमंत्रित कवियों की काव्य विधा के विषय में जानकारी होना परम आवश्यक है।संचालक को मंच पर कम से कम समय में आने वाले कवि की भूमिका तैयार कर के उसका उत्साहवर्द्धन करते रहना चाहिये।संचालक का कोई शत्रु नही होता है कवियों व संचालक में एक परिवार का रिश्ता होना आवश्यक है।मंच पर कवियों या संचालक को एक दूसरे से अनावश्यक बातचीत नही करनी चाहिये ।सामने वाले कवि की अच्छी कविता पर मोहित हो कर उसका उत्साहवर्धन करना चाहिये।कवि अगर कविता में कमजोर है तब तो संचालक की जिम्मेदारी और अधिक हो जाती है कि श्रोता उठ कर न जाने पाएं।
रही बात दूसरे कवियों की पंक्ति पढ़ने की तो मंच पर संचालक रचनाकार कवि का नाम व शहर का नाम ले उसकी पंक्ति को पढ़ सकता है इससे उस रचनाकार की कविता का सम्मान भी हो जाता हैऔर श्रोताओं उस रचनाकार के विषय मे जानकारी भी हो जाती है।अगर पँक्तियाँ अच्छी होती है तो श्रोता उस रचनाकार के प्रति जिज्ञासा रखते हुए उसको पढ़ते है और वह रचनाकार का रचना लिखना सार्थक हो जाता है

(4प्रश्न -) आप एक कवि होने के साथ साथ आप एक समाज सेवक व राजनीतिक पार्टी से भी जुड़े हो एक साहित्यकार के लिये यह कहाँ तक ठीक है?
(उत्तर)कबीर दास जी को एक समाज सुधारक कवि के रूप में याद किया जाता है।कविता मनोरंजन ही नही लोक रंजन का भी काम करती है।विनोबा भावे एक साहित्यकार होने के साथ साथ एक समाज सुधारक भी थे।गुरु नानक देव जी की गुरु वाणी तो आपने पढ़ी ही होगी।ऐसे अनेक उदहारण है।
कविता क्रांति ले कर आती है।कवि का धर्म है जैसा वो लिखे, वैसे वो दिखे।वरना उसकी बात का प्रभाव कम हो जाएगा।रही राजनीति में जाने की बात तो राजनीति समाज सेवा का व्यापक स्वरूप है।चाहे वो कविता के माध्यम से हो या अपने व्यक्तिगत प्रयासों से अथवा राजनीति माध्यम से हो देश सेवा का भाव सर्वो परी रहना चाहिये।अटल जी एक कुशल पत्रकार,एक कवि व राजनीतिक के मर्मज्ञ भी थे।डॉ कुमार विश्वास, प्रोफेसर ओमपाल सिंह निडर आपको ऐसे अनेक उदहारण मिल जायेंगे।
(5 प्रश्न)आप कवि सम्मेलनों के गिरते स्तर क्या कहना चाहेंगे?आपकी नज़र में इस गिरते स्तर का जिम्मेदार कौन है आयोजक, संयोजक, कवि या श्रोता?इस गिरते स्तर में सुधार का कोई कारगर उपाय?
(उत्तर) आज के काव्य मंचो पर फुहड़ता हावी होती जा रही है।ऐसा नही की हास्य कवि निदंनीय है।हास्य भी काव्य के प्रतिष्ठित नव रसों में अपनी एक विशिष्टता रखता है।काव्य मंच पर प्रस्तुति एक विशेष अदायगी के साथ हो सकती है।कुछ प्रेरक प्रसंग व मुहावरो का प्रयोग भी हो सकता है ।भरत मुनि ने नाट्य शास्त्र लिखा है नाट्य शास्त्र को पांचवा वेद कहा गया है भरत मुनि ने कहा- काव्य शास्त्र व नाट्य शास्त्र दोनों एक दूसरे के पूरक है बिना नाटक के काव्य अधूरा व बिना काव्य के नाटक अधूरा।
मगर कविता का धर्म व मर्यादा को नही भुलाना चाहिये।आज हास्यकवि तो अभद्र चुटकुलों के दावं पेंच के साथ अखाड़े में यूँ उतरते है जैसे जो अधिकाधिक अनर्गल व भोंडा काव्य पाठ करेगा विजयश्री उसी को मिलेगी। इसके लिये मंचो का व्यवसायीकरण सबसे अधिक उत्तरदायी है।वैसे संयोजक, कवि व श्रोताओं भी इसमें योगदान है।इस परिस्थिति को सुधारने का एक मात्र उपाय है कि अपने स्वार्थ से ऊपर उठकर साहित्य की गरिमा को उसका उचित सम्मान दिलाने की मानसिक पृष्ठभूमि तैयार की जाए।इसके लिये हम सबको प्रयास करना होगा।वैसे कोई भी कु परम्परा अधिक नही टिकती

(6-प्रश्न) अंतिम प्रश्न आपसे कि आप आज की नवोदित कवि व कवयित्रियों को क्या संदेश देना चाहेगे?

(उत्तर)मेरा सभी नवीन रचनाकारों से अनुरोध है कि सस्ती लोकप्रयिता के लिये सृजन का स्तर न गिराए।सीखने की ललक बनाये रखे।पुस्तकों का अध्यन करते रहे ।अब तो फेसबुक वट्सअप के साहित्यक ग्रुप के माध्यम से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है।गोष्टियो में कविता गाने नही सुनने जाए।मंच पर जाने की जल्दी न करें।अगर मंच पर सफल हो जाये तो मंच की चमक अपने साथ के कर न आये।

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