डॉक्टर प्रभुनाथ गुप्त ‘विवश’गोरखपुरी
एक गीत की तरह
कोई आवाज़ आती है
मीठी सी प्यारी सी
कदाचित् वह कोयल है जो
गीत गाती है
हर सुबह हर शाम………
जगाकर मेरे सुप्त हृदय को
खो जाती है या
छिप जाती है नीड़ में
बस देखता रहता हूँ देर…तक
उस छायादार बृक्ष को
हर सुबह हर शाम…… ….
फिर जाती है नज़र
सामने की खिड़की पर जो
खुलती है ….फिर…..
बन्द हो जाती है..
फिर खुलेगी जब……
मुझे नींद आने को होगी
देखता रहता हूँ उसी को
हर सुबह हर शाम ………..
कितनी निष्ठावान है
वह कोयल वह चेहरा जो
छिपाये हुए है हृदय में
कसक, वेदना और पीड़ा को
और मैं.. ….चौंक पड़ता हूँ
ज़रा सी आहट पर
कदाचित् वो…. आयें
जोहता हूँ राह
हर सुबह हर शाम……….

रचना- डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ‘विवश’ गोरखपुरी
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)