नाम- दीप्ती शुक्ला
जन्मस्थान आगरा (उत्तर प्रदेश )
कर्मस्थली : दिल्ली
शैक्षणिक योग्यता- एम. ए.(इंग्लिश )
निवास स्थान- दिल्ली
माता का नाम : शारदा देवी
पिता का नाम : केशव देव शुक्ला
अभिरुचि- कविता, गीत, फोटोग्राफी , विडयोग्राफी और एडिटिंग एवं संगीत
प्रकाशन- विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं तथा समाचार-पत्रों में कविताएँ प्रकाशित।
साहित्यिक गतिविधियाँ- विभिन्न् साहित्यिक सन्स्थाओ मे तकनिकी सह् योग एवम् कवि सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी।
भाषा- हिन्दी, अंग्रेज़ी
Mobile no.- 9810901412
क्यो मनाते है फुलेरा दूज?
फागुन मास हिंदू कालंतर का 12वां महीना है, और इसी महीने की द्वितीया को मनाई जाती है, फुलेरा दूज । फुलेरा दुज एक बहुत ही शुभ दिन माना जाता है फुलेरा दूर से ही होली के त्यौहार का शुभारंभ होता है भारत के कई प्रदेशों में इस दिन फूलों की रंगोली बनाई जाती है, और देखिए हमारे संस्कृति को कि इसी रंगोली के सूखे हुए फूलों से होली के मधुर और प्राकृतिक रंग बनाए जाते हैं। यह सनातन धर्म है यह हिंदू संस्कृति है, जिसका आरंभ भी प्रकृति को ऊर्जा देता है और जिसका अंत समस्त सृष्टि में रंग भरता है।
फुलेरा दूज पर उत्तर भारत की और मध्य भारत के कई क्षेत्रों में गोबर के छोटे आकार के उपले बनाए जाते हैं जिन्हें अपने अपने क्षेत्रों में अलग-अलग नामों से जाना जाता है उत्तर भारत में इसे गुलरिया कहाँ जाता हैं और मध्य भारत के निमाड़ क्षेत्र में इसे निमाड़ी भाषा में वैडिये या बडकुल्ये के नाम से जाना जाता है ।निमाड़ क्षेत्र में गोबर कि कई आकृतियां बनाई जाती है जैसे पान नारियल गोरी इन सब आकृतियों के छोटे-छोटे रूप बनाकर उनके बीच में छिद्र कर उन्हें एक डोर में पिरोकर होलिका दहन के दिन होलिका को समर्पित किया जाता है।
हर साल फाल्गुन शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को फुलेरा दूज मनाई जाती है। इस बार फूलेरा दूज का पर्व २१ फरवरी २०२३ को मनाया जाएगा। इसके बाद से ही होली की शुरूआत हो जाती है। फुलेरा दूज से मथुरा में होली की शुरुआत हो जाती है और इस दिन ब्रज में श्रीकृष्ण के साथ फूलों के संग होली खेली जाती है।
फुलेरादूज का महत्व
खगोलीय गणना के अनुसार, फुलेरा दूज का दिन बहुत ही शुभ माना जाता है क्योंकि इसका हर पल सभी ‘दोष’ या दोषों से मुक्त होता है और इसे ‘अबूझ मुहूर्त’ के रूप में जाना जाता है. इसलिए शादी जैसे किसी भी समारोह को किसी भी ‘मुहूर्त’ या फुलेरा दूज पर आयोजित किया जा सकता है. इस दिन किसी भी पंडित या ज्योतिषी से सलाह लेना आवश्यक नहीं है. उत्तर भारत में, ज्यादातर शादियाँ इसी खास दिन से शुरू होती हैं. यदि कोई व्यक्ति एक नया व्यापार उद्यम शुरू करने की योजना बना रहा है, तो फुलेरा दूज से बेहतर कोई दिन नहीं हो सकता है. संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि फुलेरा दूज का त्यौहार इस बात का प्रतीक है कि भगवान कृष्ण अपने भक्तों से जो स्नेह और प्यार प्राप्त करते हैं वह कैसे वापस मिलता है.
फुलेरा दूज कैसे मनाये
मंदिरों में होने वाले धार्मिक कार्यक्रमों में भगवान कृष्ण के भक्त भी भाग लेते हैं. वे भगवान कृष्ण की स्तुति में भजन (भक्ति गीत) गाते हुए दिन बिताते हैं. होली का स्वागत करने के संकेत के रूप में कुछ रंगों को भगवान कृष्ण की मूर्तियों पर भी लगाया जाता है. कार्यक्रम के अंत में मंदिर के पुजारी मंदिर में इकट्ठे होते हुए सभी भक्तों पर रंग या ‘गुलाल’ छिड़कते हैं. खासकर मथुरा और वृंदावन के मंदिरों में ये उत्सव देखने लायक होते हैं. फुलेरा दूज का त्यौहार भगवान कृष्ण को समर्पित है. भक्त पूरी श्रद्धा के साथ भगवान कृष्ण की पूजा करते हैं और समृद्धि और खुशियों का जीवन जीने के लिए उनका आशीर्वाद मांगते हैं. इस दिन लोग अपने घरों में भगवान कृष्ण की मूर्तियों को सुशोभित करते हैं. इस दिन उनके देवता के साथ फूलों से होली खेलने की रस्म होती है.

भगवान कृष्ण के लगभग सभी मंदिरों में, विशेष रूप से ब्रज क्षेत्र में जहां भगवान ने अपने जीवनकाल में सबसे अधिक समय बिताया है, फुलेरा डोज के पावन दिन पर विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. मंदिरों को सुंदर ढंग से सजाया गया है और दूर-दूर से भक्त यहाँ दर्शन करने के लिए आते हैं. इस दिन श्रीकृष्ण की मूर्ति को सफ़ेद रंग की पोशाक के साथ सजाया जाता हैं और एक रंगीन कपडे और फूलों से सजे मंडप के नीचे बैठाया जाता है. होली की तैयारी के लिए देवता की कमर पर गुलाल के साथ एक कपड़ा भी बांधा जाता है. रात में ‘शयन भोग’ के बाद रंग हटा दिया जाता है.
इस दिन विशेष ‘भोग’ तैयार किया जाता है जिसमें ‘पोहा’ और अन्य विशेष व्यंजन शामिल होते हैं. भगवान कृष्ण को अर्पित किए जाने के बाद इस’भोग’ को भक्तों में ‘प्रसाद’ के रूप में वितरित किया जाता है.’संध्या आरती’ और ‘समाज मे रसिया’ दिन के प्रमुख अनुष्ठान हैं.
इस पर्व को कई वर्षो से कवियो और गायको के साथ पूरे उत्साह के साथ मानने का कार्यक्रम करती है दिल्ली से संचालित संस्था केशव कल्चर जो इस वर्ष फुलेरा दूज से “रंगी मै श्याम रंग” बसंतोत्सव कार्यक्रम का भव्य शुभारम्भ कर रही हैबल
दिल्ली से संचालित संस्था केशव कल्चर जिसका उद्देश्य कलाकारों के मनोबल को बढ़ाते हुए विभिन्न प्रतिभाओं को तकनीकी से जोड़कर एक बड़े पटल पर लाना रहा है | यह संस्था कान्हा जी की प्रीत से सराबोर साहित्य और संगीत के उत्थान हेतु प्रयासरत है l कलाकारों के कोमल मनोभावों को एक ऊर्जामयी कवच देते हुए ये संस्था दिन प्रतिदिन उन्नति के पथ पर अग्रसर होती जा रही है। इसकी उन्नति व सफलता का श्रेय कृष्ण रंग में रंगे ,कृष्णभक्ति से सराबोर कलाकारों को जाता है।
संस्था की संस्थापिका आदरणीया दीप्ति शुक्ला जी ने बताया कि हम फुलेरा दूज से लेकर होली अष्टमी तक प्रतिवर्ष किसी न किसी बड़े कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। साथ ही उन्होने इस कार्यक्रम की रूप रेखा के बारे में बताते हुए कहा कि इस वर्ष हम ‘केशव कल्चर’, साहित्य ट्वेंटी फोर और प्रिया वल्लभ फाउंडेशन (सामाजिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं) को साथ लेकर फुलेरा दूज से होली अष्टमी तक एक विशाल एवं भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर रहे हैं। जो कुछ इस प्रकार है, फुलेरा दूज 21 फरवरी से इस कार्यक्रम का शुभारंभ केशव कल्चर के यूटूब चैनल और फेसबुक पेज पर लाइव किया जाएगा । यह कार्यक्रम 16 मार्च होली अष्टमी तक चलेगा, कुल मिलाकर यह लाइव कार्यक्रम 24 दिनों का है। इस कार्यक्रम में देश-विदेश के 24 प्रतिभागी कवि अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करेंगे , कार्यक्रम की समयावधि 1 घंटा रखी गई है। जिसमें प्रतिभागी अपनी सुंदर एवं मनभावन प्रस्तुति देंगे, इसके अतिरिक्त भी यह कार्यक्रम सभी कलाकारों को उनकी प्रस्तुति और उत्साह्वर्धन् हेतु मंच देने के लिए खुला रहेगा l साथ ही प्रतिभागियों की रचना को एक साझा-संकलन (कलर्ड) का मूर्तरूप भी प्रदान किया जाएगा जो संस्था की ओर से सभी प्रतिभागियों को नि:शुल्क उपलब्ध कराई जाएगी साथ ही सभी कलाकारों को सम्मानित भी किया जाएगा l
माँ शारदे से यही कामना है कि ‘केशव कल्चर’ द्वारा बनाई गई कार्यक्रम की यह रूपरेखा सभी को पसंद आए एवम यह कार्यक्रम सफलता पूर्वक सम्पन्न हो। ‘केशव कल्चर’ दिन प्रतिदिन उत्तरोत्तर दिन दूनी रात चौगुनी उन्नति करता रहे और प्रतिवर्ष ऐसे आयोजनों द्वारा पाठकों और दर्शकों को आनन्दित और लाभान्वित कराता रहे।
दीप्ति शुक्ला
संस्थापिका
केशव कल्चर