किस्से कवि सम्मेलनों के – 10
टनाटन बारिश के बीच झमाझम कवि सम्मेलन
मऊरानीपुर मेला जल विहार
सन्1988 से मैं कवि सम्मेलनों के मंचों पर हूँ।1988से 2021तक की इस लम्बी समयावधि में न जाने कितने कवि सम्मेलन मैंने किए।एक से एक शानदार। लेकिन उनमें से कुछ की छाप मन मस्तिष्क पर इतनी गहरी लगी कि इतने वर्षों बाद भी ऐसा लगता है जैसे कल की ही बात है।
उन्हीं विशेष कवि सम्मेलनों में से एक का किस्सा सुनाती हूँ जो मेरे हृदय पर गुदने की तरह गुदा हुआ है।
1994 से पहले की घटना है मऊरानीपुर बुन्देलखण्ड में आयोजित मेला जलविहार कवि सम्मेलन। बरसात के दिनों में मऊरानीपुर में मेला जलविहार में भव्य अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का आयोजन बरसों से हो रहा है। आज भी होता है। तब मैं ग्वालियर में रहा करती थी। मेरा नाम कुमारी कीर्ति भागवत था।उन दिनों बुंदेलखंड में मेरे अनेक कार्यक्रम लगातार हो रहे थे। छतरपुर, चरखारी, महोबा, नौगांव, मऊरानीपुर राठ आदि। छतरपुर के आसपास अधिकांश कार्यक्रमों का संयोजन श्रेष्ठ ओजस्वी कवि श्री प्रकाश पटेरिया जी किया करते थे। मऊरानीपुर के कवि सम्मेलनों का संयोजन श्री विजय व्यास जी के पास रहता था। झाँसी के डमरु सिनेमा के पास वाले मुन्ना जी उनके सहयोगी हुआ करते थे। मऊरानीपुर जलविहार कवि सम्मेलन का निमंत्रण मिला। मैं अपने बाबा के साथ मऊरानीपुर पहुँची। उस दिन इतनी तेज बरसात आई कि सारी व्यवस्थाएँ अस्त- व्यस्त हो गईं। वैसे भी जलविहार का कवि सम्मेलन सावन के महीने में होता है। बरसात आने की आशंका सदैव रहती ही है। डॉक्टर उर्मिलेश शंखधर, सुश्री ममता शर्मा,श्री सत्यनारायण सत्तन,श्री लाजपतराय विकट,श्री किरण जोशी मैं एवं अन्य कविगण मऊरानीपुर पहुँच चुके थे। दोपहर को अचानक इतनी तेज बारिश आई कि कवि सम्मेलन स्थल क्या पूरा मऊरानीपुर जलमग्न हो गया। कवि सम्मेलन का पूरा पंडाल गिर गया। सब जगह पानी भर गया। मंच पूरा गीला हो गया। श्रोताओं के घर से निकलकर कवि सम्मेलन स्थल तक पहुंचने के सारे रास्ते बंद हो गए । कहीं पेड़ गिर गए, कहीं बिजली के खंभे धराशाई गए। कुल मिलाकर कवि सम्मेलन होने की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गईं। ऐसे में कवियों एवं आयोजकों ने मिलकर यह तय किया की दस दिन बाद इन्हीं कवियों के साथ कवि सम्मेलन किया जाए और कवियों को तय मानदेय का डेढ़ गुना मानदेय दिया जाए। अगली तिथि निश्चित होने के बाद बारिश रुकते ही सभी कवि गण अपने- अपने घरों के लिए रवाना हो गए। मैं भी बाबा के साथ वापस ग्वालियर आ गई। दस दिन बाद निश्चित की गई तिथि पर हम सभी कवि पुनः मऊरानीपुर पहुंचे। आज भी बादल जोरदारी के साथ गरज रहे थे। तेज़ हवा चल रही थी।मौसम खराब था लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है। शाम तक बरसात की आशंका तो रही लेकिन बरसात आई नहीं ।श्री विजय व्यास जी एवं मुन्ना जी कार्यक्रम की तैयारियों में व्यस्त थे। रात को 8:00 बजे सभी कविगण कवि सम्मेलन के लिए पूरी तरह तैयार होकर कार्यक्रम स्थल की ओर चल दिए।जिसका अंदेशा था वही हुआ। अचानक जोर की बिजली कड़की, आंधी आई और मूसलाधार बरसात प्रारम्भ हो गई। कवि सम्मेलन स्थल पर पहुँच कर हम सभी पीछे बने पंडाल में बैठे रहे। उस वाटर प्रूफ पंडाल की छत से भी पानी टपकाने लगा। पंडाल की छत से टपकने वाले पानी की धार धीरे- धीरे तेज होती गई।सभी लोग जलविहार मेले में सच मायने में जलविहार करने लगे। श्री जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कामायानी में वर्णित जल प्लावन जैसा दृश्य उत्पन्न हो गया। एक बार कार्यक्रम स्थगित हो चुका था दूसरी बार भी बरसात ने ऐसी स्थिति नहीं छोड़ी कि उस पंडाल में कवि सम्मेलन हो सके। लगभग एक डेढ़ घंटा जमकर बारिश हुई। बिल्कुल पहले जैसी स्थिति हो गई। पंडाल में पानी भर गया। मंच पूरी तरह गीला हो गया। श्रोताओं के घर से निकल कर कवि सम्मेलन स्थल तक पहुंचने की सारी संभावनाएँ समाप्त हो गईं। रात को दस,साढ़े दस बजे बरसात धीमी होते- होते रुक गई। वरिष्ठ कवि डॉक्टर उर्मिलेश जी एवं सत्तन जी आपस में विचार विमर्श करने लगे कि अब क्या किया जाए। तभी डमरू सिनेमा के पास रहने वाले मुन्ना जी के दिमाग का डमरू बजा। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि सब्जी मंडी में कवि सम्मेलन किया जा सकता है। सब्जी मंडी थोड़े ऊंचे स्थान पर है। वहाँ पानी जमा होने का अंदेशा कम है। यदि ऐसा हो जाए तो कवि सम्मेलन प्रारंभ किया जा सकता है।सब्जी मंडी की स्थिति का जायजा लिया गया।मुन्ना जी का सुझाव कारगर साबित हुआ। सब्जी मंडी एक बहुत बड़े चबूतरे पर बनी थी। जिसके ऊपर टीन शेड था उस स्थान पर बरसात का उतना असर नहीं दिखाई दे रहा था। आनन-फानन में सब्जी मंडी के एक ओर मंच बनाया गया। माइक एवं लाइट व्यवस्था करके कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ। लगभग ग्यारह, साढ़े ग्यारह बजे कवि सम्मेलन में श्रीमती ममता शर्मा द्वारा सरस्वती वंदना की गई । ।बुंदेलखंड के श्रोता बहुत काव्य प्रेमी हैं।जहाँ पर महाराजा छत्रसाल ने महाकवि भूषण की पालकी को कंधा दिया हो वह धरती कितनी संवेदनशील, काव्य मर्मज्ञ एवं कवियों का सम्मान करने वाली होगी सम्भवतः इसकी कल्पना आप कर सकते हैं। बरसात में जगह जगह सड़कों पर पानी भरे होने के बावजूद जैसे ही माइक से कवि सम्मेलन प्रारम्भ होने की उद्घोषणा हुई वैसे ही घरों से निकल निकल कर श्रोता नए कार्यक्रम स्थल यानी सब्जी मंडी में एकत्रित होने लगे।ग्यारह बजे तक पूरी सब्जी मंडी का टीन शेड श्रोताओं से खचाखच भर चुका था। उन दिनों उर्मिलेश जी एवं ममता शर्मा की जोड़ी कवि सम्मेलन में खासी लोकप्रिय थी। उन दोनों के संवादों की जुगलबंदी श्रोताओं को बहुत भाती थी। उर्मिलेश जी अपनी विशेष अदा के साथ कवि सम्मेलन का संचालन करते थे। उनके संचालकीय कौशल के सभी दीवाने थे।जिस तरह से उनके गुरु डॉक्टर बृजेंद्र अवस्थी जी छन्दोबद्ध पंक्तियों द्वारा संचालन किया करते थे उसी प्रकार छंदबद्ध संचालन आदरणीय डॉक्टर उर्मिलेश जी भी करते थे। दोनों के संचालन में अंतर इतना था कि श्री बृजेंद्र अवस्थी जी का संचालन अधिक गंभीरता लिए हुआ करता था जबकि उर्मिलेश जी के संचालन में समय के अनुसार हास्य विनोद का पुट भी सम्मिलित था ।उर्मिलेश जी ने अपने आकर्षक व्यक्तित्व एवं ओजस्वी वाणी द्वारा मऊरानीपुर के पानीदार श्रोताओं को बाँधे रखा। सरस्वती वन्दना होते ही इन्द्रदेव पुनः मेहरबान हो गए।दोबारा बादलों की गरज के साथ बिजलियाँ चमकने लगीं और घनघोर बरसात होने लगी। बरसात की मोटी मोटी बूंदों की टपक सब्जी मंडी के टीन शेड पर टना टन,टना टन करती हुई तेज़ और तेज़ होती गई।अन्दर से कोई बाहर न जा सके,बाहर से कोई अन्दर न आ सके जैसी स्थिति हो गई।उस रात उर्मिलेश जी का अनुभव और सत्तन जी का सोंटा घुमाऊ काव्यपाठ उल्लेखनीय रहा। टीन शेड पर बरसात का जोरदार संगीत, बारिश की फुहारों में भीगते काव्य प्रेमी श्रोता और मंच पर विराजमान काव्य के धनी एक से बढ़कर एक खिलाड़ी कवि।ऐसा दृश्य उपस्थित हो रहा था जैसे डॉ कुंअर बेचैन जी के शब्दों में-
दोनों ही पक्ष आए हैं तैयारियों के साथ
हम गर्दनों के साथ हैं वो आरियों के साथ
उस रात बादलों और कवियों में होड़ लगी हो जैसे कि कौन अधिक जोर से और अधिक देर तक बरसने की क्षमता रखता है।
उर्मिलेश जी ने जाने पहचाने अंदाज में सुनाया
कवि सम्मेलन प्रारम्भ करने से पूर्व
सरस्वती माता को प्रणाम करता हूँ मैं
और फिर मंच पर बैठे सभी कवियों को
अपना नमन अविराम करता हूँ मैं
संचालन करने का मुझको जो काम मिला
पूरी चेतना से वह काम करता हूँ मैं
हो के निर्विकार सारे कवि जनों की पुकार
आप सारे श्रोताओं के नाम करता हूँ मैं
आज मंच पर कोई छविराम डाकू है तो
कोई डाकू मलखानसिंह जैसा टंच है।
कोई फूलन देवी की शक्ल लिए बैठी यहाँ
कोई डाकू घनश्याम का लिए प्रपंच है
कोई मुस्तकीम और कोई महावीरा बना
हर कोई अपनी जगह का सरपंच है
मानें या न मानें आप मुझको तो लगता है
आज का ये मंच जैसे डाकुओं का मंच है
डाकू और कवि में न भेद कुछ होता मित्रों
दोनों रात-भर जागते हैं नहीं सोते हैं
डाकू घोड़े पे सवार होके निकलते हैं
कवियों को कविताओं के तुरंग ढ़ोते हैं
डाकू धन लूटने का सपना संजोते हैं तो
कवि मन लूटने का सपना सँजोते हैं
डाकुओं पे गोली होती, कवियों पे बोली होती
डाकू और कवि दोनों एक जैसे होते हैं
ये छन्द मुझे आधे अधूरे याद थे।ओज के लोकप्रिय कवि एवं आदरणीय उर्मिलेश जी के शिष्य श्री आशीष अनल जी को धन्यवाद कि उन्होंने अपने गुरुदेव की पंक्तियों को पूरा याद दिलाया।
ममता शर्मा ने लालू जी पर पैरोडी सुनाई
बच्चे नौ ही अच्छे
नौ बच्चे लालू जी की छवि के प्रतीक हैं सच्चे
धो धो उनके कच्छे
और न जाने क्या क्या
मैंने लड़कियों की जिंदगी पर लिखी अपनी एक ग़ज़ल और दो गीत प्रस्तुत किए
बौराया हिरनीला मन
फिरता है जंगल जंगल
और
उड़ चला है दिन लगाए धूप वाले पर
याद फिर बुनने लगी है
मखमली स्वेटर
सत्तन जी ने अपना भरपूर डमरू बजाने के पश्चात भगत सिंह की फाँसी कविता प्रस्तुत कर कवि सम्मेलन को सार्थक कर दिया।
रात भर आकाश में बादल और धरती पर कवि गरजते बरसते रहे। बुन्देलखण्ड के रसज्ञ श्रोता दोनों बरसातों का भरपूर आनन्द लेते रहे। पहले सुनी सुनाई बात लगती थी कि बुन्देलखण्ड के महाराजा छत्रसाल ने महाकवि भूषण की पालकी को कंधा दिया था, लेकिन उस घनघोर बरसाती रात में वहाँ के श्रोताओं के जुनून की पराकाष्ठा तक काव्य प्रेम ने विश्वास दिला दिया कि इस मिट्टी में ऐसी अद्भुत घटना निश्चित रूप से हुई होगी।
मऊरानीपुर के जलाप्लावित कवि सम्मेलन ने अपने नाम जलविहार को उस रात पूरी तरह सार्थक कर दिया।
डॉ कीर्ति काले,नई दिल्ली
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