चले थे तन्हा ही सफर में,
लाशों के बस्ती,मुर्दों के शहर में।
गर्म हवाएँ, धूप थी चारों पहर में।
बन के छांव साथ निभाया तुमने।
सदा प्यासे ही रहे,रह के सिंधु किनारे,
जीत के भी हर बाजी,जाने क्यों हारे?
मन बार बार जाने किसको है पुकारे,
बन के सुधा प्यास बुझाया तुमने।
उम्र भर तमस से हम लड़ते ही रहे,
रोशनी की खातिर सुलगते ही रहे।
अंधेरे में बेकल,तड़पते ही रहे,
उजाले का एक दीप जलाया तुमने।
जब ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से वास्ता न रहा,
खड़े थे चौराहे पर , कोई रास्ता न रहा।
एक कदम भी चल पाने का हौसला न रहा,
नई राह,नए सफर पर चलाया तुमने।
शोभा किरण
जमशेदपुर
झारखंड
