रुला के इस क़दर गई ये बेक़सी मुझको।
हँसी की बात पर आती नही हँसी मुझको।।

तुझे कसम है मुझे छोड़के न जा तन्हा।
न मार डाले कहीं मेरी बेबसी मुझको।।
मेरा तो तेरे सिवा कोई नही दुनिया में
तू अपने पास बुला ले ओ हमनशीं मुझको।।
गमों ने घेर लिया मुझको अपनी बाहों में
मिली न जिंदगी में फ़िर कभी खुशी मुझको।।
खटक रही हूँ क्यों मैं आज उनकी आंखों में।
कभी जो कहते थे बहुत ही हूँ हसीं मुझको।।
माधुरी मिश्रा
वाराणसी