बीते 14 फरवरी 2020 को #हँसमुख के एक कार्यक्रम में राँची जाना हुआ, उसी कार्यक्रम में मुलाकात हुई Sangeeta Sahay ‘अनुभूति’ दी से। बातों-ही-बातों में इन्होनें अपनी कविता संग्रह #अनुभूति_सृजन मुझे भेंट की। किताबों से लगाव तो है किंतु समय मुझे मिल नहीं पाता पढ़ने का जिसकी वजह से आज इस बारे में लिख रहा हूँ।।

खैर वापस हज़ारीबाग़ आने पर जब मैनें किताब खोली तो पहली पँक्ति पर नजर पढ़ते ही महसूस हो गया कि इस किताब की कविताओं को कितने मनोयोग से लिखा गया होगा। पँक्तियाँ हैं-
“मैं और मेरी कविता अक्सर ये बातें करते हैं
चंचल मन कैद कहाँ
बाँधे बँधे न बंधन में
निश्छल भाव संग बहे है मन
https://www.youtube.com/watch?v=b3v4EJbiQ_s
रचे बसे है कविता में।”
उपरोक्त पँक्तियाँ कवियत्री के कविता प्रेम तथा आत्मिक स्वतंत्रता को सहजता से परिलक्षित करती हैं।।
संगीता जी ने ‘अपनी बात’ में अपने जज्बात और कविता के कोमल से कठोर भावों को कलमबद्ध किया है। अर्थात, किताब का प्रारब्ध ही एक अर्थपूर्ण परिणाम की ओर इंगित करता है।।
वैसे तो इस किताब की सभी 120 कविताओं को पढ़ना बेहद रोचक और भावुकतापूर्ण रहा किन्तु इसकी कुछ कविताओं ने मेरे अंतर्मन को झंझोड़ा है।
“”” #स्त्रीकीस्वतंत्रता “”” शीर्षक की कविता में कवियत्री ने जिस तरह एक स्वतंत्र स्त्री पर समाज की दृष्टि को निशाने पर लिया है, काबिल-ए-तारीफ है।।
इस किताब की सभी कविताएँ जीवन के विभिन्न रिश्तों की सूक्ष्मता को सफलतापूर्वक शब्दांकित करती हैं, जो कवियत्री की बहुआयामी भाव-दक्षता को दर्शाती हैं तथा कविताओं में प्रयोग किये गए बिम्ब जैसे चक्रव्यूह, इंद्रधनुष, जूही के फूल, मोगरा इत्यादि से संगीता दी ने जीवन के विभिन्न भाव, अवयव, आयामों को सटीकता से उकेरा है जो इनकी काव्य-दक्षता का परिचायक है।।
अंत में इस स्वीकरोक्ति के साथ कि इस किताब के बारे में लिखने में मैं कंजूसी कर रहा हूँ, मैं ये जरूर कहूँगा कि यह पुस्तक छंदमुक्त कविता जगत में एक सुदृढ उपस्थिति दर्ज कराएगी।
संगीता सहाय ‘अनुभूति’ दी को अजस्र शुभकामनाएं।।
इति।।
- पुष्प🌹
