करिश्मा सोनी-
“वो सावन, जिसका इंतजार है”
जब बच्चे पानी में, कश्ती चलाया करते थे,
और बड़े छुट्टी के बहाने, गप्पे लगाया करते थे,
शिव भक्ति के प्रति, सच्चे श्रद्धा भाव थे,
सोम उपवास के भी, अलग ही चाव थे।

बाग़-बगीचों में बड़े-बड़े, झूले डाले जाते थे,
इसी बहाने रिश्ते भी खूब सहलाये जाते थे,
स्त्रियों को सजने-संवरने का मौक़ा मिल जाता था,
सखी-सहेलियों संग उनका मन और खिल जाता था।
फल और मिष्ठान से, थाल सजाए जाते थे,
बच्चों के मन भी, इसी से बहलाए जाते थे,
सावन की फुआरें हमें कुछ, गीत याद दिलाया करती हैं,
और रिमझिम बरसती बारिश, प्रीत निभाया करती हैं।
तीज पर्व से त्योंहारों का, शुभ आगमन किया जाता था,
मोर-पपीहे की मधुर आवाज़ से, मन मोह लिया जाता था,
नवविवाहित दुल्हनों को, घर बुलाया जाता था,
और इसी तरह सावन माह, खूबसूरत बनाया जाता था।
“पर वक्त के साथ सावन के
वो महीने पुराने हो गए..
पेड़ों से लंबे झूलों के
किस्से पुराने हो गए..
भरे हों थाल मि
ष्ठान के
घर-घर चाहे हर जगह..
अब तीज के स्वागत से
नए लोग वीराने हो गए..”