अलका “राज “अग्रवाल

सावन की सुहानी सी झड़ी ;—–

सावन लग गया पपीहा भी गुनगुना ने
लगा , चारो तरफपढ़ गये झूले अमराई पर
तुम नही आये मेरे परदेशी राह तकत
मोरै नैन पथ की राह तकते तकते थक
गये आजा तू इस सावन में ,

अब नही रहा जाए मोरि आँखियन
में नीर श्याम तुम नही आये , सावन
के झूले पढ़ गये देख सब सखियाँ मुझे
चिढ़ाये आया ना श्याम तेरी गलियों में ,,,,,

चल सखी यमुना किनारे जहाँ श्याम बाँसुरी
बजता एक पल भी चैन पड़े मोहे ले चल
श्याम मोये अपनी नगरी रे ,,,,,

कुंज कुञ्ज गली भी महकने लगी मोगरे
की कलियन से ,,,इन फूलन ने मेरो दिल
लिया चुराये तू ले गया नैनो की मस्ती में ,,,

भोरे भी ललचाये देख मेरी छवि रे ,,,,पग
मेरी पैजनियाँ बाजे श्याम दीवानी तेरी
बस्ती में ,,,,,,कैसी मनमोहनी छवि तेरी तू
है छैल छबीला रे इक झलक दिखला दे तू
मेरा सुन्दर श्याम सलोना ,,,,,

आ जाओ आज वही सावन में रास रचेंगे
रास हो सबन के बीच जो हम रचे वो कहलायेगा
प्यारी महारास रे , ये अलौकिक अद्भुत सृष्टि भी
देख वो रास रह जाये दंग ऐसा अंनोख अपना मिल्न
बने जो ये रास ,,,,,,,

ये रास नही महारास है जो आत्मा से परमात्मा
का मिल्न ही महारास है ,,,,,,,,,,
आ जाओ इस सावन में भी हो अद्भुत
ये रास रे ,,,,,,,,,,,,,,!!

अलका “राज “अग्रवाल

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