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ग़ज़ल
Mon Jul 12 , 2021
वतन की चूमकर मिट्टी तिलक माथे लगाए हैं। लगाकर जान की बाजी तिरंगे को सजाए हैं।। अमानत है यही अशफ़ाक़ शेखर मंगलपांडे की। लहू से सींचकर धरती वतन अपना बचाए हैं।। बनाकर घास की रोटी कभी राणा ने खायी थी। न पूछो जंगलों में दिन यहाँ कैसे बिताए हैं।। जले […]
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