वामपंथ विश्व की राजनीति व इतिहास में सबसे चर्चित विचारधारा, जो सबसे ताकतवर भी है इसलिए दुनिया के तमाम देशों की राजनीति व समाज को प्रभावित करती हैं। दुनिया की मीडिया व एकेडमिया पर इसका कब्जा है।
वर्तमान भारत में यह विचारधारा संघर्ष का सामना कर रही है, इसलिए भारत की राजनीति व सामाजिक फिजा में भी संघर्ष दिखाई दे रहा है। जो मोदी के नेतृत्व में BJP की सरकार आने के बाद से शुरू हो गया था और अब बड़ा आकार ले चुका है। इसकी यह खूबसूरती है कि वामपंथ जो कि धर्म को नहीं मानता,आज एक विशेष धर्म का सहारा लेकर सत्ता विशेषकर एक दल व व्यक्ति के खिलाफ खड़ा है। जबकि वामपंथी होने की पहचान नास्तिक होना है, इनके प्रणेता मार्क्स धर्म को आम जनता को चटाई जाने वाली अफीम मानते थे।
आप को क्या लगता है कि धर्म को लेकर ऐसा विचार रखने वाले वामपंथी सहज ऐसा कर रहें हैं।
नहीं
ऐसा बिल्कुल नहीं है।
वामपंथी नेतृत्व व इनके शुभचिंतक बहुत समझदार होतें है। इनको यह पता है कि भौतिक जीवन में व्यवहारिक रूप से जीने के लिये किसी न किसी आस्था पर विश्वास रखना आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो समाज से वामपंथीयों का जुड़ाव नहीं हो पायेगा, विचारधारा व्यक्तियों के बिना सिकुड़ती हुई एक दिन स्वतः समाप्त हो जायेगी। ऐसी स्थिति में इन्होने यह तय किया कि यह लोग समय, स्थिति, परिवेश आदि के अनुरूप बहुसंख्यकों के विरोध को अपनी Prime Policy बनायेंगे। मतलब की वामपंथी जहां भी होंगे वहां के बहुसंख्यक धर्म के विरुद्ध स्वयं को रखेंगे।
इनकी नीति इतनी साफ है कि यह जहां भी रहेंगे वहां के बहुसंख्यक धर्म को अधिनायकवाद ( Majoritarianism ) की अवधारणा में लपेट कर वहां के अल्पसंख्यकों ( Minorities ) के विरुद्ध पेश करेंगे। एकेडमिया, मीडिया व फिल्मों का सहारा लेकर यह लोग वहां के बहुसंख्यकों को एक शोषक के समान सदा दुनिया के सामने रखेंगे। ये लोग सदा अल्पसंख्यकों के साथ बहुसंख्यकों के विरोध में रहेंगे तथा अपने प्रभाव का उपयोग कर इनकी पहाड़ जैसी गलती को तिल के समान दुनिया के सामने रखेंगे तथा बहुसंख्यकों की तिल जितनी गलती को पलभर में ताड़ बना के पेश करेंगे। ये बहुसंख्यकों की सामाजिक तथा धर्मिक बुराइयों का गाजे बाजे से प्रचार करेंगे, दुनियाभर के अखबारों में बड़े-बड़े लेख लिखेंगें, घण्टो के TV प्रोग्राम व डिबेट होंगे लेकिन अल्पसंख्यकों की सामाजिक-धार्मिक कुरीतियों को उनका धर्मिक तथा सांस्कृतिक हथियार बता कर उनकी पैरवी करते हुये यही लोग दिखेंगे। इसनीति के अनुसार अमरीका में गोरे ईसाइयों, पाकिस्तान में इस्लाम, इजराइल में यहूदी, भारत में हिन्दू धर्म के विरुद्ध यह स्वतः रूप से मुखर हैं।
हालांकि भारत में वामपंथी राजनीतिक रूप से प्रभावी नहीं हैं, मात्र केरल तक सीमित हैं। अंग्रेजों के जाने के बाद इनका प्रभाव भारत से स्वतः समाप्त होने लगा। क्योंकि गणतांत्रिक प्रक्रिया में इस विचारधारा को राजनीतिक खादपानी पर्याप्त रूप से नहीं मिलता, ये धारा शोषक के विरुद्ध हैं, जबतक अंग्रेज थे तब तक इनकी सार्थकता थी, लेकिन जब ये चले गये तब लोकतांत्रिक व्यवस्था में इनके लिये पर्याप्त राजनीतिक स्पेस नहीं बचा। लेकिन भारत के वामपंथियों को आधुनिक शिक्षा व समाज से उस समय सबसे ज्यादा परिचित होने, कांग्रेस के वामपंथ के प्रति झुकाव का लाभ मिला, जिसकी बदौलत इन्होंने भारत की एकेडमिया व मीडिया पर अपना एकाधिकार जमाया, जिसे अब सोशल तथा डिजिटल मीडिया के जमाने में चुनौती मिल रही है। अब तक जनता को प्रभावित करने वाले इन दोनों प्रमुख साधनों पर वामपंथियों का प्रभाव होने के कारण इन्होंने सांस्कृतिक वामपंथ को बढ़ावा दिया जो कि इनके राजनीतिक संस्करण के मुकाबले ज्यादा बड़ी चुनौती है।
सांस्कृतिक वामपन्थ जो कि धीरे-धीरे हमारे देश मे घर कर चुका है यह सीधे हमारी संस्कृति पर प्रभाव डालता है। आज यह इतनी पुष्ट अवस्था में है यह ऐसे ही नहीं हुआ। देश की आजादी के समय वामपंथी सबसे ज्यादा पढ़े लिखे थें, अतः इन्हें इतिहास लिखने, देश के बड़े व प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों में पढ़ाने का कार्य मिला, इनके द्वारा पढ़ाये हुये लोगों ने इसी ज्ञान को आगे बढ़ाया, हमारे देश के अधिकतम प्रशासनिक अधिकारी इन्हीं के द्वारा लिखी पुस्तकों के आधार पर चयनित होतें हैं। ये लोग देश में बुद्दिजीवी के रूप में प्रसिद्ध हुये। मीडिया व फिल्म इंडस्ट्री भी इनके प्रभाव में हैं।
किताबों, अखबारों व फिल्मों का सहारा लेकर वामपंथी युवाओं व छात्रों को सीधे प्रभावित करतें हैं। इन माध्यमो के सहारे ये लोग लागातार एकपक्षीय बुराइयों को लगातार समाज के सामने रखतें हैं। हमारे युवा को ये लोग बड़े सुंदर शब्दों में बहुसंख्यक धर्म की बुराइयों के बारे में पढातें तथा दिखातें हैं, लेकिन दूसरे पक्ष की बुराइयों को इतनी ही खूबसूरती से ढक कर अच्छाइयों के साथ पेश करतें हैं। बचपन से पढ़ाई गई पुस्तकों, नौकरी के लिये इन्ही के द्वारा लिखी गई पुस्तको पर निर्भरता आदि के कारण वामपंथी अपने प्रयास में सफल भी है।
किताबों, मीडिया व फिल्मों के सहारे बहुसंख्यक के विरुद्ध वामपंथी साजिश इतनी खूबसूरती के साथ कि गई है कि आम जनता एक बार इसे समझ ही नहीं पाती की इन साधनों के प्रभाव में वह धीरे-धीरे अपनी संस्कृति से दूर हो रही है। ये लोग आज भी सतीप्रथा, बाल विवाह, घूंघट के विरोध में दिखाएंगे तथा पढ़ायेंगे लेकिन तीन तलाक, हलाला, बुर्का प्रथा जैसी बुराइयां इनके किसी लाभ की नहीं हैं, इनका विरोध करने से वामपंथी Survive नहीं कर पायेंगे इसलिये इसपे चूप रहतें हैं। इनको साबरिमाला व शनि मंदिर में बुराई दिखेगी लेकिन कोई मुस्लिम महिला किसी मस्जिद में नमाज अदा नहीं कर सकती इसको यह धार्मिक भेदभाव नहीं मानतें। एकेडमिया व मीडिया के सहारे मुख्यतः बहुसंख्यकों को नियमित रूप से बुरा बताया जाता है। कई पत्रकार, लेखक, कवि, बुद्दिजीवी व कलाकार सार्वजनिक रूप से बहुसंख्यक संस्कृति की लगातार आलोचना करते हुये मीडिया व सोशल मीडिया पर इसी एजेंडे के कारण दिखाई देतें हैं।
आज 2020 में वामपन्थ को इंटरनेट के कारण चुनौती मिल रही है, सोशल मीडिया के युग में जागरूक बहुसंख्यक इनसे सवाल करने लगें हैं। लेकिन इतना काफी नहीं हैं। इससे कुछ होना जाना नहीं है, क्योंकि आज भी इनकी पकड़ मीडिया व एकेडमिया पर जबरजस्त है। इनकी विचारधारा स्वभावतः सत्ता के विरुद्ध होने के कारण विद्रोही व क्रान्तिकरी होती है, जिसे बहुत खूबसूरत पैकेजिंग के कारण व स्वभाव से विद्रोही होने के कारण युवा सहजता से स्वीकार लेता हैं। यही सांस्कृतिक वामपन्थ की विजय है।
इसको रोकने के लिये हमें प्रयास करना पड़ेगा, बचपन से वामपंथियों के प्रभाव वाले पाठ्यक्रम पढ़ कर युवा कॉलेज, यूनिवर्सिटी में जाते ही इनके प्रभाव में आ जातें हैं। ऐसा न हो इसलिए घर में हमें बच्चों को सांस्कृतिक व धार्मिक माहौल देने की आवश्यकता है। बच्चों को समय देने की आवश्यकता है, उनके साथ आज के हर अभिवावक को इस गर्मियों की छुट्टी में रामानन्द सागर की रामायण अवश्य देखनी चाहिये।
मोदी सरकार को भी इस विषय में देखने की आवश्यकता हैं, मैं इनके पहले कार्यकाल में भी इस बात पर मुखर था कि MHRD को NCERT के सिलेबस में तुरतं सुधार की आवश्यकता है। बच्चों को इतिहास की किताबें मात्र मुगल व गांधी जी तथा नेहरू के भारत के बारे में बताती है। सामाजिक अध्ययन कि किताबे भारत को सपेरों के देश के रूप में बताती है व सभी सामाजिक बुराइयों को सिर्फ बहुसंख्यको में दिखती है। बचपन से एकपक्षीय फीडिंग के कारण बच्चों में स्वयं के धर्म व संकृति को लेकर हीन भावना विकसित होती है, जो कि वामपन्थ के फलने-फूलने का मूल कारण है।
MHRD को NCERT की किताबों में सभी समुदायों की अच्छाइयों व बुराइयों को समान रूप से पढ़ाना चाहिये। सिंधु सभ्यता, वैदिक काल, गुप्त काल, विजयनगर साम्राज्य आदि का अध्ययन करवाना चाहिये। सरदार पटेल, विवेकानन्द, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपतराय, गोविंद वल्लभ पंत, मैडम कामा, डॉ भीमराव अंबेडकर, डॉ राजेन्द्र प्रसाद, लालबहादुर शास्त्री, मदनमोहन मालवीय, वीर सावरकर आदि के बारे में पढ़ाना चहिए। भारत की किताबो में भारत के बारे में जब तक पढ़ाया नहीं जायेगा, तब तक वामपन्थ रहेगा, बबूल का बीज बो कर आम की आशा करना व्यर्थ है। सरकार के साथ हमें भी इस विषय पर सोचना चाहिये, जबतक सांस्कृतिक वामपन्थ को अच्छे से काउंटर नहीं किया जायेगा तब तक देश नें स्थिरता, सतत विकास, एकरूपता आदि की कल्पना बेमानी है।
लेखक – मकरध्वज तिवारी
यह लेखक के निजी विचार हैं. अगर आप लेखक के विचारों से सहमत हैं तो कृपया इस लेख को शेयर करें….धन्यवाद