मीडिया पंचायत न्यूज़ नेटवर्क (धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट):
कोविड 19 के मद्देनजर भारत-नेपाल सीमा सील घोषित की गई है। इस सील घोषणा के बीच सबसे महत्वपूर्ण बॉर्डर सौनौली में जो कुछ भी चल रहा वह हास्यास्पद है। दूसरे शब्दों में इसे नौटंकी भी कहा जा सकता है।
भारत-नेपाल के मालवाहक ट्रकों पर कोई रोकटोक नहीं है। ट्रांसपोर्ट व कस्टम से जुड़े लोग एक आइकार्ड बनवा कर आसानी से सरहद आर-पार कर सकते हैं। लेकिन आम नागरिकों पर काफी पाबंदी है।
करीब चार माह में कोरोना सतर्कता के नाम पर बार्डर प्रतिबंध के नाम पर जो भी कदम उठाए गए वह सभी कदम स्थानीय व्यापार के लिए घातक रहे। गौर करने वाली बात यह है कि नेपाल आयात- निर्यात होने वाले सामानों व मालवाहक ट्रकों पर कोई रोक नहीं लगाई गई है। जाहिर है कि दिल्ली टू काठमांडू बैठे बड़े व्यापारियों पर कोई अधिक फर्क नहीं पड़ा है। यह एक बड़ा खेल कहा जा रहा। जो कि कोविड19 की आड़ में रचा गया है।
इस खेल को समझने के लिए कुछ सवाल ही काफी हैं। जैसे कि प्रति दिन हजारों की संख्या में ट्रक चालक व उनके सहयोगी सरहद आर पार कर रहे हैं। उनसे कोरोना का भय नहीं है। जबकि आम लोगों से है। यह कितना उचित तर्क है?
भारत से निर्यात हुए सामानों में कोरोना नहीं है। लेकिन भारत से नेपाल जाने वाले आम पर्यटकों व यात्रियों से कोरोना का भय है। यह कितना महा उचित तर्क है।सड़क पर मालवाहक ट्रकों का रेला उतर सकता है, तो नेपाल-भारत के बाजारों में खरीददारी करने वाले लोग क्यों नहीं?
सबको पता है कि बार्डर सील की प्राथमिकता नेपाल की तरफ से अधिक है। लेकिन यह सील दोयम दर्जे का है। सामानों के लिए छूट , नागरिकों पर प्रतिबंध है। यह किस अंतरराष्ट्रीय समझौते के तहत है? ऐसे तमाम सवालों व अपनी मांगों को लेकर आखिरकार सोनौली के स्थानीय व्यापारी आंदोलन के मूड में हैं।