समर्पण- भावना द्विवेदी

समर्पण, त्याग और निष्ठा से मंजिल मिल ही जाती है।
अगर मौसम बसंती हो कली तब खिल ही जाती है।।

हो कितनी भी घड़ी विपरीत मगर तू धैर्य मत खोना।
कहा बनता ही है कुंदन तपे बिन आग में सोना।
सहेजा गर कहीं टुकड़ा कमीजे सिल ही जाती है।
समर्पण,त्याग और निष्ठा से मंजिल मिल ही जाती है।।

करू सत्कर्म नित दिन मै प्रभु से प्रीत हो मेरी।
चलू सतमार्ग पे हरदम भलाई रीत हो मेरी ।
बढ़े अधर्म,अत्याचार तो धरती हिल ही जाती है।
समर्पण त्याग और निष्ठा से मंजिल मिल ही जाती है।।

हो कितना भी कठिन रस्ता हो मंजिल दूर भी कितनी ।
नहीं है चैन अब मुझको अथक हूं, चूर भी कितनी,
हो फौलादी इरादे तो शिला भी छिल ही जाती है।
समर्पण त्याग और निष्ठा से मंजिल मिल ही जाती है।।
✍ भावना द्विवेदी✍

mediapanchayat

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

चका चौंध -अवनीश पांडेय

Sat May 23 , 2020
नित नवीन इस चका चौंध मेंकुछ तो हमने खोई है,जो आज मानवता अपने ज़द मेंफूट फूट के रोई है। बरपा सन्नाटा सड़कों पर,खुद ही कैद हुए है आज,लाशें गीन गीन उंगली रोतीभूल गया है सारा साज।काट रहे हैं आज, आज तकजो कुछ हमने बोई हैआज मानवता अपने जद में .. […]