
फोटो-धर्मेंद्र चौधरी
भारत-नेपाल संधि 1950 के संशोधन की कवायद् शुरु, फंस सकता है पेंच
(धर्मेंद्र चौधरी की रिपोर्ट)
भारत-नेपाल के बीच 31 जुलाई सन् 1950 में हुई शांति व मैत्री संधि में संशोधन की कवायद् शुरु हो गयी है। संधि पर समीक्षा के लिये दोनों देशों की तरफ से हरी झंड़ी मिल गयी है। नेपाल सरकार ने हाल ही में इस बात की पुष्टि की है।
वहीं दूसरी तरफ संधि के स्वरुप, नेपाल-भारत के वर्तमान वैश्विक संबधों को प्रगाढ़ता व कटुता को ध्यान में रख कर देखा जाय तो संधि के संशोधन में पेंच फंस सकता है।
बीबीसी एक रिपोर्ट की मानें तो संधि में हुए इन समझौतों पर लंबी बहस हो सकती है।
वह यह कि ,
“संधि के एक समझौते के तहत नेपाल का कोई भी नागरिक भारत में प्रापर्टी खरीद सकता है, नौकरी कर सकता है( आईएएस व आईएफएस को छ़ोड़)”।
उक्त समझौते की लाइन भारत के दृष्टिकोण से बदलाव का मुद्दा बन सकती है। क्योंकि समझौते में भारतीयों को नेपाल में ये अधिकार नहीं दिये गये हैं।
समझौते में भारत व नेपाल बराबर के हित भागीदारिता की बात रखेंगे। यहां नेपाल द्वारा भारत से हथियार खरीदे जाने के संधिगत ढ़ाचे में बदलाव की बात आ सकती है।
पनबिज़ली, सड़क परियोजनाओं व व्यापार में दोनों में परस्पर बराबर के सहयोग की बात होगी।
ज़ाहिर है कि नेपाल की चीन के प्रति करीब़ियों व नेपाल में पाकिस्तान के अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप भारतीय सुरक्षा पर खतरा बन सकते हैं। जो कि संधि संसोधन का एक अहम विषय बन सकती है।
पिछ़ले एक दशक से नेपाल के कूटनीतिक रंग ढंग को देखकर भारत संधि में समझौते का पक्षधर व बराबर सहभागिता के समझौते के मूड़ में नज़र आ रहा है। नेपाल ने भी सहभागिता भरी संधि समझौते के लिये हाथ बढ़ाएं हैं। लेकिन देखने वाली बात यह हो सकती है कि पेंच कहां फंसेगा?
,,और अगर पेंच फंसा तो यह माना जा सकता है कि वह पेंच निर्माता सिर्फ और सिर्फ “ड्रैगन” होगा।