बुरा मान गए
कहते हैं जो तुम बिना जी नहीं सकते,
एहसास दूरियों का जो दिलाया तो बुरा मान गए।
पढ़ाते हैं पाठ जो इंसानियत का सबको,
आईना हमने जो दिखाया तो बुरा मान गए।
गुज़रती है हर रात उनकी दिवाली की तरह,
दीपक हमने इक जो जलाया तो बुरा मान गए।
होते रहे खु़श जो बरबादी हमारी देखकर,
अंगार उन पर इक जो गिराया तो बुरा मान गए।
करते रहे ताउम्र जो झूठ और फ़रेब का व्यापार,
सच इक सामने जो आया तो बुरा मान गए।
देखते हैं तमाशा जो जलाकर दूसरों के घर,
शोला इक ‘सरिता’ ने भड़काया तो बुरा मान गए।
सरिता नोहरीया