
धर्मेन्द्र चौधरी की पड़ताल :
महराजगंज जिले के सोहगीबरवा वन्य जीव प्रभाग के संरक्षित क्षेत्र में अवैध रूप से कीमती पेडों की कटान होना व वन्य जीवों का शिकार हो जाना कोई नई बात नहीं है। आए दिन ऐसे मामले आते हैं। लोग पकड़े जाते हैं। वन अधिनियम के तहत कार्रवाई होती है। फिर कहानी समाप्त हो जाती है। लेकिन कहानी स्माप्तगी तमाम सवाल छोड़ जाती है। सबसे बड़ा सवाल की अवैध कटान थमने का नाम नहीं लेती है। जाहिर है कि इस अवैध कारोबार का सरगना हर बार बच जाता है। जिस पर शायद ही कोई मनन करता है। जो मनन भी करते हैं, वह एक स्तर तक जाकर चुप्पी साध लेते हैं। जिसके तमाम संभावित कारण हो सकते हैं।
ऐसा ही एक मामला इन दिनों निचलौल क्षेत्र में चर्चा का विषय बना है। एक कथित फर्म की कथित भूमि से सागौन के पेडों की कटाई जारी थी। काटे गए पेड़ों के बोटे पिकअप पर लादकर कहीं भेजे जा रहे थे। रात 12 बजे के करीब प्रशासनिक अमला हरकत में आता है। मौके से दो जेसीबी मशीन, दो ट्रैक्टर ट्राली व एक पिकप पकड़े जाते हैं। चार लोग भी हिरासत में लिए जाते हैं। जो पेड़ काटने वाले मजदूर बताए जा रहे हैं। मीडिया पर खबर आती है। फार्म के मालिक समेत चार मजदूरों पर वन अधिनियम के तहत मुकदमा दर्ज होता है। मौके से पकड़े गए वाहन जब्त कर लिए गए। कितने पेड़ काटे गए हैं, बोटे कितने हैं इसकी गिनती अभी पेंडिंग है। डीएफओ का बयान आता है कि अवैध कटान में कार्रवाई हुई है।
रेंजर की तहरीर पर मुकदमा दर्ज हुआ है।
The end ,,,,,,,,,,,,,?
हर बार की तरफ यह कहानी भी समाप्त। लेकिन सवाल वही बरकरार? सरगना कौन?
पकड़े गए मजदूरों का बयान कितना मायने रखता है? इस मामले में पकड़े गए मजदूरों ने मीडिया के सामने जो बात कही है। उसे कितने वजन से लिया जाना चाहिए?