मैं युग कलंक में पाप प्रतीक,
मैं महाविनाश का वाहक हूं,
मैं द्यूत क्रीड़ा का महारथी,
मैं षड्यंत्रों का नायक हूं।
हाथों के बीच रचा इतिहास,
गांधार राज का शस्त्र बना,
वीरान किया हस्तिनापुरी,
योद्धाओं से कुरुक्षेत्र पटा,
मुझ पर काले जो बिंदु छपे,
मुस्कान कुटिल वह मेरी है,
अहंकार घृणा विद्वेष रक्त,
धमनियों में धार घनेरी है,
बाणों से पैनी दृष्टि मेरी,
भालों से भी जो नुकीली है,
आत्मा को जो छलनी कर दे,
वह धार खडग सी मेरी है।
जब जब चौपड़ पर वार किया,
सुख शांति दांव में जीत लिया,
भर सभा बीच मर्यादा को ,
अपमानित और निर्वस्त्र किया,
बस ऐसा ही है व्यक्तित्व मेरा,
संवेदना विहीन अस्तित्व मेरा,
मुझसे दया की आस व्यर्थ,
निर्मम कठोर कृतित्व मेरा,
हे जगत सुनो और ध्यान रखो,
मैं एक बात बतलाता हूं,
हैं मित्र मेरे व्यसनी कामी,
मैं सिर्फ आमंत्रण पर ही आता हूं।।
डॉ. ज्योत्सना सिंह लखनऊ
