विषय:- वैवाहिक वर्षगाँठ
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आज ही का दिन था प्यारा
जब तुम सजकर आयी थी,
मेरे सूने आँगन में
मन के रंग सजायी थी।
खनकी चूड़ी, झुमका डोला
पायल ने भी की झंकार,
चमकी बिंदिया माँथे पे
हार गले में सजायी थी।
नयनों में काज़ल की रेखा
अधर पुष्प की पंखुड़ियाँ,
तेईस सावन बीत गये पर
हो वैसी, जैसी आयी थी।
आज पुन: निज अलकों को
कटि प्रदेश तक लहराओ,
मेरे जीवन साथी अब
आलिंगन में आ जाओ।
मौलिक रचना-
डॉ० प्रभुनाथ गुप्त ‘विवश’
(सहायक अध्यापक, पूर्व माध्यमिक विद्यालय बेलवा खुर्द, लक्ष्मीपुर, जनपद- महराजगंज, उ० प्र०)