हमारे बुजुर्ग सम भी विषम भी

वृद्धावस्था जिंदगी की सांझ–उम्र का ऐसा पड़ाव जो हू-ब-हू बचपन सरीखा होता है–निश्चल-स्नेहल- दुनिया से विरक्ति का भाव व अपेक्षा केवल इतनी होती है की कुछ पल बैठकर जीवन के कुछ किस्से चंद खट्टी-मीठी यादों को सुनाकर अपना मन बहलाये और बुजुर्ग अपने कटु अनुभव की सीख बच्चो को बताये —
भारतीय संस्कृति में भी बुजुर्गों के सम्मान की परंपरा रही है –वानप्रस्थाश्रम जो की आधुनिक समय में वृद्धाश्रम का नया वर्जन बनकर उभर रहा है-जिसके कारणों से लगभग हम सभी अवगत है–
बचपन और बुढ़ापा दोनों में एक समानता ये है की अच्छी परवरिश के लिये बचपन बड़ो पर और बुढ़ापा बच्चो पर आश्रित होता है–
वहीं दूसरी ओर एक असमानता यह भी की हम बचपन को तो भिन्न पहलुओं में देखते हैं -लेकिनवृद्धावस्था के लिये केवल आदर -सम्मान -जिम्मेदारी-मानसिक संबल-दया-फर्ज़- केवल व केवल सेवा-सुश्रूषा के भाव ही हमारे मन में होते है वो भी पूर्ण समर्पण से—
और होने भी चाहिए क्योकी बुजुर्गो के आशीष की छाया में ही हमारा जीवन सार्थकता पाता है-किंतु सामाजिक परिवर्तन-परिवेश के आधार पर यदि हम वृद्धावस्था को भी सिक्के के दो पहलुओं के आधार पर देखें तो अपने आस-पास ही कई दर्दनाक रहस्य उजागर होगें–जो की एक बड़ा सामाजिक मुद्दा है और नैतिक विकास में बाधक है तथा नैतिकता के पतन का भी कारण है–
#बुजुर्गसमया_विषम ??

१. सम– बुजुर्ग जो अपनी मीठी वाणी से हमारी गलतियों पर हमें सचेत कर डांट-डपट कर समाज में आगे बढ़ने की सही राह दिखाते है—
विषम–बुजुर्ग जो तानाशाही और कटुवाणी-अपशब्द-गाली-गलौचसे मानसिक यातना देकर व उन्नति के सारे मार्ग बंद कर देते है–
२.सम– अनपढ़ बुजुर्ग जो तिनका-तिनका जोड़कर एक छोटा सा घौंसला बनाते हैं जिसमें संतान को स्वतंत्र विकास का अवसर व बेहतर शिक्षा व भविष्य देते है–
विषम–बुजुर्ग जो वेलऐजूकेडेट व आर्थिक रुप से आत्मनिर्भर होते हुये भी संतान की शिक्षा के मार्ग को पूर्णतः बाधित करने का संभव प्रयास करते है–व आर्थिक रूप से भी अपनी संतानों पर ही आश्रित होते है और इनके सफल बच्चो की नींव में कहीं भी इनका एक तिनका योगदान नहीं होता है—
३.सम–बुजुर्ग जो अपनी संतानो के सपनो की नींव रखते हैं–घर की ईंट-ईट जोड़कर अपनेपन से सभी के मन को एक धागे से एकसूत्र में बांधने का प्रयास करते है–
विषम– बुजुर्ग जो परिवार के हित और मान-सम्मान में होती खुशीयों की बरकतो पर भी अंकुश लगाते है तथा वे शारिरिक-मानसिक रुप से सक्षम होते हुये भी २४ घंटे अकर्मण्य रहते है व पारिवारिक भेदभाव -विघटन-आपसी फूट वैमनस्य फैलाते है–
४.सम–बुजुर्ग जो परस्पर संवाद अपने विचारों का आदान-प्रदान कर पारिवारिक सदस्यों की गतिविधियों व व्यवहार से भलीभांति अवगत रहते है-घर की सुख-शांति का पूरा ध्यान रखते है–
विषम –बुजुर्ग जो कूपमंडूक होते हैं इनके ना तो कोई मित्र होते हैं!! ना ही रिश्तेदारों या नन्हे बच्चों से लगाव!! ना ही कोई सामाजिक दायरा खुद तक ही सिमीत होते हैं –पारिवारिक जिम्मेदारियों से इन्हें कोई सरोकार नहीं होता–महिनों घर के सदस्यों की शक्ल नहीं देख पाते और तीज-त्योहार पर ही परिवार को देखते है–
५.सम– समाजिक नये परिवर्तनो को समझते हुये नयी पीढ़ी में प्रतिस्पर्धा का भाव जगाकर मनोबल बढ़ाते है उनके कार्यों की सराहना प्रशंसा करते है फिर गर्व भी करते है अपने बच्चों पर–
विषम– बुजुर्ग जो सदा बच्चो की खूबियों के सकारात्मक परिणामो पर भी तिरस्कार व कमियां गिनाकर अपमानित करते हैं-घर के सदस्यों को हरपल मानसिक प्रताड़ना देते हैं “मेरा घर धौंस” बताते हुये घर से निष्कासित (निकाल) तक कर देते है-
६.सम—बुजुर्ग जो नन्ही किलकारीयो बहू-बेटीयो की हंसी-ठिठोली को घर की रौनक समझते है –व नन्हे बच्चो की शरारतो पर भी बलाएं लेते है–बच्चो की परवरिश के लिये तरह-तरह की समझाइश भी देते है—
विषम—बुजुर्ग जो बच्चो की परवरिश से पूर्णतः अनभिज्ञ होते है –दुधमुंहे बच्चों की देखभाल व उनके स्वास्थय व आवश्यकताओ से बढ़कर इन बुजुर्गो की दिनचर्या की प्राथमिकताएं तय होती है– बच्चो या घर के सदस्यों के हंसने -रोने यहां तक की आस-पड़ोस में बात करने के भी ये कट्टर विरोधी होते है—
७.सम– बुजुर्ग जो नयी पीढ़ी और स्वयं के दौर की स्वस्थ तुलना कर आधुनिक शिक्षा -नौकरी-व्यवसाय में चुनौतियों को भली-भांति समझते हैं मानसिक संबल देते है–
विषम– बुजुर्ग जो अनर्गल अपेक्षाएं पाल कर प्रताड़ित करते हैं सदस्यो को-समय परिवर्तन को स्वीकारते नहीं है और सदा संतान को उपेक्षित कर व्यक्तित्व विकास में बाधा डालते है—
८.सम —बुजुर्ग जो सभी सदस्यों को समान मानते हैं दकियानूसी रिवाज़ो और स्वआस्था -पाखंड-को दूसरों पर थोपते नहीं है–
विषम –बुजुर्ग जो दोयम -दर्जे
का व्यवहार करते है– स्व आस्था -पाखंड- मान्यता में कर्मभाव तज कर उलझा कर सभी के समय की बर्बादी करते हुये धार्मिकता को भी घरेलू-क्लेश में बदल देते है–
९.सम–बुजुर्ग जो बच्चों को पार्क ले जाते है-उनके साथ खेलते है -होमवर्क कराते है उनकी सभी स्कूल गतिविधियों उपलब्धियों का ध्यान रखते है आशीष भरी थपकी से हौसला बढ़ाते है–
विषम –बुजुर्ग जो आपातकाल में भी कभी गलती से बच्चों को स्कूल लेने नहीं जाते भले ही अनजान व्यक्ति को जाना पड़े घर में खेलने से परहेज़ तथा आस-पास के बच्चों संग खेलने पर भी प्रतिबंध लगाते है–
वृद्धावस्था में शुगर -डिमेंशिया -याददाश्त का कमजोर होना -विकलांगता –असामान्य व्यवहार करना –उपेक्षित महसूस करना– स्वयं को एकाकी समझना ये सामान्य लक्षण है जिसके लिये बुजुर्गो के प्रति हमारे मन में अपनेपन सहानुभूति व दया -सेवा का भाव होना आवश्यक है–
१०.सम- ऐसे बुजुर्ग जिनसे किसी भी पारिवारिक या अन्य सामान्य या गंभीर मुद्दे पर बेहिचक बात की जा सकती है–
विषम–ऐसे बुजुर्ग जिनसे मामूली सी बातों पर स्वीकृति के लिये भी अपाइंटमेंट लेनी होती है घर के सदस्यों को–कई दफा डरते हुये लिखीत रूप में अपनी बात कहनी होती है–
११.सम— वे बुजुर्ग जो बच्चों को सभी का सम्मान करना सिखाते है-सभी पर समान निगरानी होती है इनकी–
विषम — वे बुजुर्ग जो घर आये अतिथियो का भी अपमान करते है– पूर्व अनुमानित पारिवारिक विघटनकारी घटनाओं को देखकर भी अनदेखा करते है–
इन चंद बिंदुओं पर गहन चिंतन किया जाये तो बुजुर्गो के साये के बगैर घर—
“घर नहीं केवल एक सराय है”
किंतु तर्क-वितर्क से यदि दोनो पक्ष मर्यादा व सम्मान सहित इनका हल निकालते है तो घर की सुख-शांति व सभी का जीवन खुशहाली भरा होता है! सही निर्णय यदि संतान के पक्ष से निकले तो कभी भी बुजुर्ग स्वयं को अपमानित महसूस ना करे--
बुजुर्गो के अंहकार-वर्चस्व-तानाशाही-बुरे व्यवहार से अगली पीढ़ी की शिक्षा-दीक्षा-रोजी-रोटी संग उनकी परवरिश भी बाधित होती है–
तो क्यूं ना! व्यस्त दिनचर्या जी रही नयी पीढ़ी व एकाकी जीवन से परेशान बुजुर्ग नयी पीढ़ी व दुनिया के नये परिवर्तनों को स्वीकारते हुये वे स्वयं को उपेक्षित व हताश समझने के बदले–
“कर्म प्रधान विश्व रचि राखा”
के आधार पर ईश्वर द्वारा प्रदत्त अपने शौक-रुचियो-को जिंदा रख व्यस्त रहे वृद्धावस्था को जिंदादिली से जिये–
आप वटवृक्ष है तो परिवार आपकी शाखाएं –आप सूर्य की भांति है तो परिवार के सदस्य ग्रह जो आपके आशीष व दुआओं रुपी प्रकाश से प्रकाशित है–तो परिवार पर अनावश्यक पाबंदी लगाकर ग्रहण ना बने–
पाखंड के बदले धर्म एवं दमनकारी नीतियों के बदले कर्म की शिक्षा देवे–
नयी पीढ़ी को भी ध्यान देना होगा चाहे आर्थिक या सामाजिक रुप से आप बुजुर्गो पर आश्रित है या बुजुर्ग आप पर
चाहे आप संस्कारो की गठरी लिये एक पंक्ति में श्रेणीबद्ध है और यूं ही रहना चहाते है– तो बिल्कुल रहिये लेकिन तब-तक- जब -तक की आपके जीवन पर कोई वज्रघात ना हो —
केवल एक सीमा तक– इसके बाद भी यदि आप सब सहते हैं –तो सामाजिक विकास की गति को अवरूद्ध करते हैं– और यदि आप इन रुढ़ियो व पाखंड के खिलाफ आवाज उठाते हैं तो नयी पीढ़ी के लिये भी एक नयी राह खोलते हैं– और समाज को विकास की और अग्रसर करते है —
आपसी सामंजस्य स्थापित कर वानप्रस्थाश्रम के नये वर्जन वृद्धाश्रमों की जगह हम विकास के अन्य नये प्रारुपो को भी नवीनीकरण दे सकते है—
बुजुर्गो की दशा या नयी पीढ़ी को कोसने वृद्धाश्रम पर आरोप -प्रत्यारोप करने से पहले अंतर्मन व वास्तविकता– परिस्थितियों पर जरुर विचार करें —
वीणाश्री💜