ये नैना क्यों अब थक से जाते है….
जागते हुए भी ख्वाबो के पीछे क्यों भागते जाते है ?
ये नैना अब क्यों थक से जाते है ?
क्यों दिनभर ये पलको पर नए ख़्वाब सजाते है ?
क्यों सच्ची सी इस दुनियां को बस मिथ्या ही दिखलाते है ?
कभी शोर ये मचाते है,कभी प्राणों को उथल-पुथल कर जाते है,
कभी जकड़ जेहन के ज़ख्मो को ये शांत से रह जाते है।
लायक ये ना देख सके ,
पर क्यों सब नालायक़ सा मुझे दिखाते है..?
क्यों इस दुनिया को देख-देख ये उसमे ही खो जाते है..?
बिगड़े – बिगड़े से ये नैना मुझे क्या समझाना चाहतें है..?
नींदों में भी जग ये
नैना अब बस थक से जाते है..अब बस थक से जाते है…।

स्वरचित ,मौलिक
वेदिक मिश्रा
उम्र-16
वारासिवनी,मध्यप्रदेश