
मैं हूँ नहीं हूँ
अधखुली खिड़की से देखा
बाहर झांककर,
धीरे से,सबकी नज़रों से
बचते हुए,
बागों में पंक्षी
शोर मचा रहे थे
फुदक रहे थे,
इस डाल से उस डाल।
एक चिड़िया सिर्फ
फड़फड़ा रही थी।
एक लड़की
खिड़की की ओट से सटी
उस चिड़िया को
देख रही थी,
गुमसुम सी,चुपचाप,
चिड़िया पूछ बैठी,
मेरे पंख टूट गए,
उड़ नहीं सकती,
तुम क्यों नहीं उड़ती?
लड़की आंसू भरे आंख,
रुंधे गले से बोली,
मेरे पंख तोड़ दिए गए।
मैं भी नहीं उड़ सकती
खिड़की पर बैठी
मैं पूछती हूं जैसे खुद से
मैं हूं या नहीं ?